वक़्त की नज़ाकत को समझिये चुप रहिए
क्यूँ हसीं बहानों को परखिये चुप रहिए
बात वो जिसे सुन कर सभी के दिल खुश हों
कुफ़्र सच भले हो क्यूँ ही कहिये चुप रहिए
जो नहीं मिला क्या याद में रोना उसके
जो मिला उसे बस याद रखिये चुप रहिए
अब कहाँ रही ताक़त किसी में सुनने की
फिर क्यूँ भला परवाह करिए चुप रहिए
ख़ामुशी बड़ी ख़ुशक़िस्मती से मिलती है
उम्र भर उसे मेहमान रखिये चुप रहिए
बात-बात में सर पे उठा लें दुनिया जो
एहतियात उनसे कुछ बरतिए चुप रहिए
बोल कर परेशाँ हैं जहाँ में कितने ही
आप क्यूँ भला बेचैन रहिए चुप रहिए
खुल चुका सभी पर भेद उनका फिर क्यूँ ना
जान बूझ कर अनजान बनिए चुप रहिए
बेवफ़ा नहीं वो लोग यूँ ही जलते हैं
अब तो बोझ ये मन से झटकिये चुप रहिए
क्या नहीं सुना सबने लगे जब खुलने तो
हों नशे में भी तो मत बहकिये चुप रहिए
लोग बेवजह कुछ बोल कर फँस जाते हैं
क्या किसे कहा क्यूँ याद रखिये चुप रहिए
फ़लसफ़ा यही इक ज़िन्दगी में अपना है
वो मेरा नहीं फिर क्यूँ उलझिए चुप रहिए
वाह गुरुदास चुप रहिए कह कर गज़ब कर गए ।
ReplyDeleteमेरा कुछ न कहना ही मेरी सदा हो बैठा ।
इक बस तू ही नहीं मुझ से खफा हो बैठा ,
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा ।
मस्लहत छीन ली है क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार मगर
कुछ न कहना ही मिरा मेरी ख़ता हो बैठा
बहुत खूब
बहुत शुक्रिया!
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