Thursday, 5 August 2021

चुप रहिए


वक़्त  की  नज़ाकत  को समझिये चुप रहिए
क्यूँ   हसीं  बहानों  को  परखिये  चुप रहिए

बात वो  जिसे सुन कर सभी के दिल खुश हों
कुफ़्र  सच भले हो  क्यूँ ही कहिये चुप  रहिए

जो  नहीं मिला   क्या  याद  में रोना उसके
जो मिला  उसे  बस  याद  रखिये चुप रहिए

अब  कहाँ रही ताक़त  किसी में  सुनने  की 
फिर  क्यूँ   भला परवाह  करिए चुप  रहिए

ख़ामुशी   बड़ी   ख़ुशक़िस्मती से मिलती  है
उम्र भर  उसे  मेहमान  रखिये  चुप  रहिए 

बात-बात   में  सर  पे  उठा लें  दुनिया जो
एहतियात  उनसे   कुछ  बरतिए  चुप रहिए

बोल कर  परेशाँ हैं  जहाँ   में   कितने  ही
आप  क्यूँ  भला  बेचैन  रहिए  चुप  रहिए

खुल चुका  सभी पर भेद उनका फिर क्यूँ ना
जान  बूझ  कर अनजान  बनिए  चुप रहिए

बेवफ़ा  नहीं  वो  लोग  यूँ  ही   जलते  हैं
अब तो बोझ ये  मन से  झटकिये चुप रहिए

क्या नहीं सुना  सबने  लगे जब  खुलने  तो
हों नशे में भी तो  मत बहकिये  चुप  रहिए

लोग  बेवजह  कुछ  बोल  कर  फँस जाते हैं
क्या किसे  कहा  क्यूँ  याद रखिये चुप रहिए

फ़लसफ़ा  यही  इक  ज़िन्दगी  में  अपना है 
वो  मेरा  नहीं फिर क्यूँ उलझिए  चुप  रहिए

2 comments:

  1. वाह गुरुदास चुप रहिए कह कर गज़ब कर गए ।
    मेरा कुछ न कहना ही मेरी सदा हो बैठा ।
    इक बस तू ही नहीं मुझ से खफा हो बैठा ,
    मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा ।

    मस्लहत छीन ली है क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार मगर

    कुछ न कहना ही मिरा मेरी ख़ता हो बैठा
    बहुत खूब

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