चारों तरफ़ ख़ुशी कुछ ग़म देखता हूँ मैं
यूँ हर कहीं है तू पर कम देखता हूँ मैं
अब भी न आये तुम तो कैसे यकीं करूँ
क्या बेवजह तुम्हें अरहम1 देखता हूँ मैं
क्या दर्द ही सबब है ईमान का मेरे
क्यूँ इस सवाल को महरम2 देखता हूँ मैं
मिट्टी में इस वतन की हम साथ थे पले
क्यूँ आँख में तेरी ये वहम देखता हूँ मैं
पाबंदियाँ भले हों रोने पे सल्तनत में
आँखें कई यहाँ पर नम देखता हूँ मैं
हर रोज़ हार जाते हैं भूख से कई
मुश्किल ये ज़िन्दगी पैहम3 देखता हूँ मैं
जिस ख़ून का नहीं था कोई गवाह भी
उस ख़ून से सना परचम देखता हूँ मैं
1. अरहम = अत्यधिक दयालु
2. महरम = हराम; राज़दार / दोस्त
3. पैहम = निरंतर, लगातार,
बारबार
Bahut accha likha hai ek ek Sher kabile tareef hai. Murli
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया!
Delete