Thursday, 7 March 2019

होली


(चन्द साल पहले एक प्रतियोगिता में प्रसून जोशी के दिए मिसरे 
"चल होली खेलें यार, चल ख़्वाब रंगें इस बार" पर लिखी कविता)




चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार

ऊँच-नीच को भूल कर
बीते कल को भूल कर
रूठों का दिल जीत कर
फिर दोस्त बनें इस बार

चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार

जीवन है इक चित्र सा
कूची इसकी कर्म ही
मन को जो निर्मल कर दे
वो रंग भरें इस बार

चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार.



6 comments:

  1. बहुत दिनों के बाद इतनी प्यारी कविता पढ़ने को मिली धन्यवाद आपका

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  2. बहुत बढ़िया मित्र !

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