(चन्द साल पहले एक प्रतियोगिता में प्रसून जोशी के दिए मिसरे
"चल होली खेलें यार, चल ख़्वाब रंगें इस बार" पर लिखी कविता)
चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार
चल ख़्वाब रंगें इस बार
ऊँच-नीच को भूल कर
बीते कल को भूल कर
रूठों का दिल जीत कर
फिर दोस्त बनें इस बार
बीते कल को भूल कर
रूठों का दिल जीत कर
फिर दोस्त बनें इस बार
चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार
चल ख़्वाब रंगें इस बार
जीवन है इक चित्र सा
कूची इसकी कर्म ही
मन को जो निर्मल कर दे
वो रंग भरें इस बार
कूची इसकी कर्म ही
मन को जो निर्मल कर दे
वो रंग भरें इस बार
चल होली खेलें यार
चल ख़्वाब रंगें इस बार.
चल ख़्वाब रंगें इस बार.
बहुत दिनों के बाद इतनी प्यारी कविता पढ़ने को मिली धन्यवाद आपका
ReplyDeleteआभार !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मित्र !
ReplyDeleteआभार सत्यजीत !
DeleteBeautiful
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
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