Saturday, 30 April 2022

फ़ुरसतें

फ़ुरसतें  आज़ार1  बन जायेंगी  हमने  कहाँ सोचा था
मुश्किलें  इस राह भी  आयेंगी  हमने  कहाँ सोचा था

हम  मुहब्बत में  गिरफ़्तार हो  सब कुछ  लुटा बैठे हैं 
धड़कनें  ये  रंग  दिखलाएंगी  हमने  कहाँ  सोचा  था

दोस्त दौलत इश्क़ औलाद  ये सब  नेमतें2 हैं उसकी 
नेमतें  भी  दिल  दुखा जायेंगी  हमने  कहाँ  सोचा था

नाज़ तो है  फ़ैसले पर हमें अपने  मगर अब क़िस्मत 
मंज़िलें  इस  राह  ठुकरायेंगी  हमने  कहाँ  सोचा था

तिश्नगी3 पहचान है कि अभी जिंदा हूँ मैं पर अल्लाह 
हसरतें   ता उम्र   तड़पायेंगी  हमने  कहाँ  सोचा  था

एक चुप्पी बस बहुत थी किया रुसवा मुझे महफ़िल में 
आप  यूँ  बेवक़्त  शरमायेंगी  हमने  कहाँ   सोचा  था



1. आज़ार = आपत्ति, मुसीबत, दर्द, तकलीफ़; पीड़ा, कष्ट; ख़राबी 
2. नेमत = ईश्वर का दिया हुआ उपहार; वरदान 
3. तिश्नगी = प्यास, लालसा, तड़प, उत्कंठा, तमन्ना, तीव्र इच्छा, अभिलाषा


2 comments:

  1. डूबने को तो डूबे मगर नाज है,
    अहले साहिल को हमने पुकारा नहीं।
    मेरे चेहरे से गम आशिकारा नहीं,
    ये न समझो कि मैं गम का मारा नहीं।
    बहुत खूब शानदार । 💐💐💐

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