Tuesday, 20 July 2021

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी  में  अब  इक  ठहराव  चाहिए
अब  हमें  ख़ुद से भी  अलगाव  चाहिए

मुश्किलें  ज़िन्दगी में  कब  न थीं मगर
इस  तरह  का  किसे  उलझाव  चाहिए

भर  चुके  हैं  पुराने  ज़ख़्म  अब सभी
ज़िन्दगी  से  नया  फिर  घाव  चाहिए

बोरियत  ज़िन्दगी  की  कब तलक रहे
दिल को अब इक नया  बहलाव चाहिए

हाशिये तक  सिमट कर  क्यूँ  रहे भला
ज़िन्दगी  को   ज़रा   फैलाव   चाहिए

ज़िन्दगी का  सबक़  आसान कब  रहा
इसलिए    बारहा1   दुहराव    चाहिए

मसअले2 मुख़्तलिफ़3  इस  दौर के नहीं
सोच  में   बस  अलग  लहराव चाहिए

इंतिहा4 हो चुकी जब ज़ुल्म की तो फिर
वक़्त   माक़ूल5   है  बदलाव  चाहिए

जब    लगे    डूबने  उम्मीद  आख़िरी
हौसलों  की  नई   इक  नाव   चाहिए

दर्द  तू  पूछ  मत  ऐ  ज़िन्दगी समझ
शाह6   हूँ  शाह  सा   बर्ताव   चाहिए





  1. बारहा = बार-बार, प्राय:, कई बार
  2. मस’अला = मुद्दा, समस्या, मुआमला
  3. मुख़्तलिफ़ = भिन्न, अन्य, पृथक
  4. इंतिहा = आख़िरी हद, चरम सीमा, बहुत ज़ियादा, पराकाष्ठा
  5. माक़ूल = उचित
  6. शाह = राजा, सबसे बड़ा / बेहतर










Tuesday, 13 July 2021

गुनाह

गुनाहों   का  तेरे   अब   फ़ैसला   जाने  कहाँ   होगा
क़यामत  आ चुकी  अब  तो  ख़ुदा  जाने  कहाँ  होगा

डरा कर  ख़ौफ़  से  तेरे  सितम  होता  रिआया1 पर
ख़तम ये  ज़ुल्मतों2 का  सिलसिला  जाने  कहाँ होगा

हुए  हैं  हादसे  कितने  अज़ल3  के बाद  से  लेकिन
हुआ   जो   आज   है  वैसा हुआ  जाने  कहाँ  होगा

मुहब्बत  हो  गई   फिर  तो  तुम्हारी  ख़ुशनसीबी है
बग़ावत  का  मगर   फिर  हौसला  जाने  कहाँ होगा

लिया था  जो  अहद4 तुमने  किसी के साथ जीने का
तुम्हें  क्या  है ख़बर  भी  वो  मरा  जाने  कहाँ  होगा

लगा ले  जो  गले  सबको  नफ़ा नुक़सान  ना  सोचे
जहाँ  में   शख़्स  वो  ऐसा   भला जाने कहाँ  होगा

सफ़र में  हर  मुसाफ़िर को  चले अपना  बनाते  जो
दिलों   का  कारवाँ   उनका लुटा  जाने  कहाँ  होगा

ठिठुर कर ठंढ  में  अक्सर  वतन की याद आती  है
सुनहरी  धूप  का  आँचल  बिछा  जाने  कहाँ  होगा

मिला अब तक तुझे जो भी ख़ुदा की तू समझ रहमत
बिना  उसके  तेरा   हासिल रुका  जाने  कहाँ  होगा

तुम्हारा साथ  हो कर भी  तड़प  कम ना  हुई जिसकी
बिछड़ कर फिर  सुकूँ  उसको मिला  जाने  कहाँ होगा

मुहब्बत कर गुज़र  ऐ दिल  ये रुत  वापस नहीं आनी
हिचक कर  रह गया  तो  क्या पता  जाने कहाँ  होगा







1. रिआया = प्रजा, जनता
2. ज़ुल्मत = अँधेरा; अज्ञान 
3. अज़ल = अनादिकाल, सृष्टि की शुरुआत
4. अहद = प्रतिज्ञा, वादा



Thursday, 1 July 2021

दुनिया

रूह   को  दे  सुकूँ   जो  वो शख़्स  पैहम1  नहीं मिलता
रू- शनास 2 तो  कई  हैं  पर  कोई  महरम3 नहीं मिलता

आदमी    वो    भला  था  ऐसा  सभी  लोग  कहते  हैं
मौत  पर  क्यूँ  कहीं उसकी  कोई  मातम 4 नहीं मिलता

भागती  फिर  रही   दुनिया  जुस्तुजू 5 सिर्फ़ ख़ुशियों  की   
और मुनासिब सा एक हमको  दर्द-ए-पुर-ग़म6  नहीं मिलता 

सोच  आख़िर  तुझे  ही   क्यूँ   कामयाबी   नहीं  मिलती
प्यास  इतनी अगर  होती  आब–ए–ज़मज़म7  नहीं  मिलता

भीड़   की   बेरुख़ी   का  आलम   न  पूछो  क़यामत है
सैकड़ों  दोस्त  हैं  लेकिन  कोई  हमदम8   नहीं  मिलता

क़ुदरती   बात  है  आख़िर   आदमी  का   गुज़र  जाना

सच  भले हो  मगर इससे दिल को मरहम9  नहीं मिलता 

मौत को  टालना  ही मक़सद  बने  ज़िन्दगी   का   जब

क्या अजूबा अगर उसमें   कोई  दम  ख़म  नहीं   मिलता

सरसरी  तौर पर तो  अब जानते   हैं   सभी   सब   को
दरम्याँ  पर  किसी  के  भी रब्त-ए-बाहम10  नहीं  मिलता

सब   छुपे    हैं  नक़ाबों   में  कोई   चेहरा नहीं  सच्चा
काग़ज़ी हर अदा जब हो  चश्म-ए-पुर-नम11  नहीं  मिलता

वो मरासिम12 कहाँ  अब मसरूफ़13 वो भी  कहीं  हम भी
अब कहीं  वो हमें  गुज़रा  अह्द-ए-मुबहम14 नहीं मिलता

दूर  बेहद  भले  मुझसे    दोस्त    बरसों   पुराना   है
साथ वो  हर कदम पर है गो15 मुजस्सम16 नहीं  मिलता 



1.       पैहम = लगातार, बार-बार

2.       रू-शनास = सूरत भर पहचानने वाला; casual acquaintance

3.       महरम = राज़दार, हमराज़; हार्दिक मित्र; जानने-समझने वाला, ज्ञानी

4.       मातम = शोक

5.       जुस्तुजू = तलाश, खोज, ढूँढना

6.       पुर-ग़म = दुःखपूर्ण, ग़म से भरा हुआ

7.       ज़म ज़म = काबे के नज़दीक एक पवित्र कुआँ जिसके उद्गम को हज़रत इस्माइल और उनकी माता की प्यास और उन पर हुई ख़ुदा की मेहरबानी से जोड़ कर मानते हैं

8.       हमदम = जिगरी दोस्त, जो आखिरी दम तक साथ देता हो

9.       मरहम = ज़ख़्म पर लगाया जाने वाला लेप

10.   रब्त-ए-बाहम = परस्पर मेल-जोल वाला सम्बन्ध

11.   चश्म-ए-पुर-नम = आँसुओं से भरी आँख

12.   मरासिम = ताल्लुक़ात, आपसी मेल-जोल

13.   मसरूफ़ = जिसे फ़ुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, व्यस्त

14.   अह्द-ए-मुबहम = वो वक़्त जिसकी याद तक धुँधली पड़ गई हो; बहुत पहले का समय

15.   गो = यद्यपि

16.  मुजस्सम = साकार, सशरीर, साक्षात