रूह को दे सुकूँ जो वो शख़्स
पैहम1 नहीं मिलता
रू- शनास 2 तो कई हैं पर कोई महरम3 नहीं मिलता
आदमी वो भला था ऐसा सभी लोग कहते हैं
मौत पर क्यूँ कहीं उसकी कोई मातम 4 नहीं मिलता
भागती फिर रही दुनिया जुस्तुजू 5 सिर्फ़ ख़ुशियों की
और मुनासिब सा एक हमको दर्द-ए-पुर-ग़म6 नहीं मिलता
सोच आख़िर तुझे ही क्यूँ कामयाबी
नहीं मिलती
प्यास इतनी अगर होती आब–ए–ज़मज़म7 नहीं मिलता
भीड़ की बेरुख़ी का आलम न पूछो क़यामत है
सैकड़ों दोस्त हैं लेकिन कोई हमदम8 नहीं मिलता
क़ुदरती बात है आख़िर
आदमी का गुज़र
जाना
सच भले हो मगर इससे दिल को मरहम9 नहीं मिलता
मौत को टालना ही मक़सद बने ज़िन्दगी का जब
क्या अजूबा अगर उसमें कोई दम ख़म नहीं मिलता
सरसरी तौर पर तो अब जानते हैं सभी सब को
दरम्याँ पर किसी के भी रब्त-ए-बाहम10 नहीं मिलता
सब छुपे हैं नक़ाबों
में कोई चेहरा नहीं सच्चा
काग़ज़ी हर अदा जब हो चश्म-ए-पुर-नम11 नहीं मिलता
वो मरासिम12 कहाँ अब मसरूफ़13 वो भी कहीं हम भी
अब कहीं वो हमें गुज़रा अह्द-ए-मुबहम14 नहीं मिलता
दूर बेहद भले मुझसे दोस्त बरसों पुराना है
साथ वो हर कदम पर है गो15 मुजस्सम16 नहीं मिलता
1.
पैहम = लगातार, बार-बार
2.
रू-शनास = सूरत भर पहचानने वाला; casual acquaintance
3.
महरम = राज़दार, हमराज़; हार्दिक मित्र; जानने-समझने वाला, ज्ञानी
4.
मातम = शोक
5.
जुस्तुजू = तलाश, खोज, ढूँढना
6.
पुर-ग़म = दुःखपूर्ण, ग़म से भरा हुआ
7.
ज़म ज़म = काबे के नज़दीक एक पवित्र कुआँ जिसके उद्गम को हज़रत
इस्माइल और उनकी माता की प्यास और उन पर हुई ख़ुदा की मेहरबानी से जोड़ कर मानते हैं
8.
हमदम = जिगरी दोस्त, जो आखिरी दम तक साथ देता
हो
9.
मरहम = ज़ख़्म पर लगाया जाने वाला लेप
10.
रब्त-ए-बाहम = परस्पर मेल-जोल वाला सम्बन्ध
11.
चश्म-ए-पुर-नम = आँसुओं से भरी आँख
12.
मरासिम = ताल्लुक़ात, आपसी मेल-जोल
13.
मसरूफ़ = जिसे फ़ुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, व्यस्त
14.
अह्द-ए-मुबहम = वो वक़्त जिसकी याद तक धुँधली पड़ गई हो; बहुत पहले का समय
15.
गो = यद्यपि
16. मुजस्सम = साकार, सशरीर, साक्षात
बहुत खूब , तुम्हें पढ़ कर अहसास होता है कि उर्दू शायरी की क्लासिकल परम्परा को जीवित रख रहे हो , उसे ऊंचाई दे रहे हो। खुदा तुम्हें मंजिल बख्शे।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया!
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