Sunday, 9 May 2021

उलझन


महफ़िलों  से  भागता  हूँ   कोई  तदबीर   नहीं  होती

इस मुहब्बत  के सिवा क्या  कोई  तक़रीर  नहीं होती


है गुज़ारिश आज महफ़िल की कि सूरत हो बयाँ उनकी

आज  जाना  क्यूँ  ख़ुदा की  कोई  तस्वीर  नहीं होती


पास हो कर  भी रहा जो दूर  कमबख़्त न जाने  क्यूँ

अब  मुकम्मल  इस जहाँ में  कोई तक़दीर नहीं होती


माँगता हूँ  अब  दुआओं में  तुम्हें रोज़  तुम्हीं से मैं

सादगी  की मेरे  दिल सी  कोई  तफ़्सीर  नहीं होती


वो ही वो आए नज़र क्यूँ  अब मुझे हर एक चेहरे में

क्यूँ किसी और शै की  ऐसी  कोई तक्सीर नहीं होती



तदबीर = उपाय

तक़रीर = बातचीत , परिचर्चा

तफ़्सीर = व्याख्या

तक्सीर = प्रचुरता

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