महफ़िलों से भागता हूँ कोई तदबीर नहीं होती
इस मुहब्बत के सिवा
क्या कोई तक़रीर नहीं होती
है गुज़ारिश आज
महफ़िल की कि सूरत हो बयाँ उनकी
आज जाना क्यूँ ख़ुदा की कोई तस्वीर नहीं होती
पास हो कर भी रहा जो दूर कमबख़्त न जाने क्यूँ
अब मुकम्मल इस जहाँ
में कोई तक़दीर नहीं होती
माँगता हूँ अब दुआओं में तुम्हें रोज़ तुम्हीं से मैं
सादगी की मेरे दिल सी कोई तफ़्सीर नहीं होती
वो ही वो आए नज़र क्यूँ अब मुझे हर एक चेहरे में
क्यूँ किसी और शै की ऐसी कोई तक्सीर नहीं होती
तदबीर = उपाय
तक़रीर = बातचीत , परिचर्चा
तफ़्सीर = व्याख्या
तक्सीर = प्रचुरता
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