कुछ इस तरह खो गई है मेरी ज़िन्दगी तुझमें
कि ढूँढने वाले को तू नज़र आए है मुझमें
बिछड़ गया तब हुआ इल्म अपनी मुहब्बत का
तेरे बिना फिर कहाँ बात वो अब रही मुझमें
भटक रहा था तुझे ढूँढ़ता जाने मैं कब से
मुझे कहाँ थी ख़बर तू मिलेगा मुझे मुझमें
मैं अक्स हूँ उस ख़ुदा का जिसे पूजता है तू
बुराइयाँ लाख फिर भी नज़र आए हैं मुझमें
न जाने कब ख़त्म
होगी ख़ुदा मेरी गुमशुदगी
न दे मुझे रहनुमा छोड़ बस हौसला मुझमें
Wow.......Brilliant
ReplyDeleteThanks
Deleteरंग गुलाल की धूम मची है मेरा मन सुना बिन तेरे,
ReplyDeleteसब कुछ जैसे भूल गया हूं कुछ भी याद नहीं बिन तेरे।
बहुत उम्दा लिखे हो दोस्त।
शुक्रिया! प्रेरणा स्रोत तुम ही हो. और ये मिसरा "बिन तेरे ..." भी.
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