Wednesday, 14 April 2021

गुमशुदगी


कुछ इस तरह  खो गई है  मेरी ज़िन्दगी तुझमें

कि ढूँढने  वाले  को  तू  नज़र  आए है  मुझमें


बिछड़ गया तब हुआ इल्म अपनी मुहब्बत का

तेरे बिना  फिर कहाँ बात  वो अब  रही मुझमें 

 

भटक रहा था  तुझे ढूँढ़ता  जाने  मैं  कब से  

मुझे  कहाँ  थी  ख़बर  तू  मिलेगा  मुझे  मुझमें 


मैं अक्स हूँ  उस ख़ुदा का  जिसे पूजता है तू

बुराइयाँ लाख  फिर भी नज़र  आए हैं मुझमें 


न जाने कब ख़त्म होगी ख़ुदा मेरी गुमशुदगी

न  दे  मुझे  रहनुमा  छोड़ बस हौसला मुझमें 


4 comments:

  1. रंग गुलाल की धूम मची है मेरा मन सुना बिन तेरे,
    सब कुछ जैसे भूल गया हूं कुछ भी याद नहीं बिन तेरे।

    बहुत उम्दा लिखे हो दोस्त।

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    1. शुक्रिया! प्रेरणा स्रोत तुम ही हो. और ये मिसरा "बिन तेरे ..." भी.

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