कुछ दिनों के लिए ही सही तुम मुझसे दूर न जाया करो
और मुमकिन हो तो कभी वक़्त से पहले भी लौट आया करो
तुम्हारे यहाँ न होने से जिंदगी यूँ तो बदस्तूर1 चलती रहती है
पर कुछ कमी सी है जो मुसलसल2 हर वक़्त खलती रहती है
मुश्किलें बस मजाज़ी3 ही नहीं यहाँ कुछ मस’अले4 रूहानी5 भी हैं
और कुछ कहानियाँ हैं जो तुम रूबरू6 बैठो तो तुम्हें सुनानी भी हैं
तुम्हारे यहाँ न होने से पता नहीं क्यों घड़ी बेतरतीब6 चलती है
नींद कम होती है सुब्ह जल्दी होती है शाम देर से ढलती है
छुट्टियों का दिन तुम्हारे बिना कुछ और भी भारी गुज़रता है
वक़्त-ए-फुर्क़त7 ज़हरीले साँप की तरह रुक-रुक कर सरकता है
अभी तो कुछ ही दिन गुज़रे हैं अभी इक लम्बा अर्सा8 बाक़ी है
दर्द का क़तरा9 गुज़र गया और दर्द का दर्या10 बाक़ी है
1.
बदस्तूर = दस्तूर के अनुसार; यथावत
2.
मुसलसल = निरंतर, लगातार, सतत
3.
मजाज़ी = सांसारिक
4.
मस’अले = समस्याएँ
5.
रूहानी = रूह या आत्मा से सम्बंधित; दिली
6.
बेतरतीब = जो तरतीब में न हो; क्रमहीन; अनियमित; अस्त-व्यस्त
7.
वक़्त-ए-फुर्क़त = जुदाई का समय
8.
अर्सा = समय; अंतराल
9.
क़तरा = बूँद
10. दर्या = नदी
Aisa laga ye Hamare liye hi hai
ReplyDeleteMashallah bahut khoob Gurdas bhai
बेहद शुक्रिया
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