सफ़र ये क्या कहाँ मंज़िल किधर से आ रहे हैं हम
इन्हीं अनबुझ
सवालों में उलझते जा रहे हैं हम
मुलाक़ातें नहीं मंज़िल बिछड़ना मरहला1 फिर क्यूँ
तसल्ली क्यूँ तकल्लुफ़2 से नहीं अब पा रहे हैं हम
बिछड़ कर दोस्त यूँ कोई किसी से मर नहीं जाता
बिना तेरे मगर फिर क्यूँ बिख़रते जा रहे हैं हम
नज़र भर देख तो लें हम मुख़ातिब3 किस
बला से हैं
फ़ुसूँ4
है हुस्न उसका या कि धोखा खा रहे हैं हम
बड़ी मक़बूलियत5 दी मौत ने उस ज़िन्दगानी को
मरा जो भूख से अब क्यूँ उसे घर ला रहे हैं हम
सुना है मौत से पाबन्द कोई शै6 नहीं फिर क्यूँ
गुज़रते वक़्त से आँखें चुराते
जा रहे हैं हम
1. मरहला = पड़ाव
2. तकल्लुफ़ = तकलीफ़ उठाना; शिष्टाचार; दिखावटी तौर पर कोई काम करना
3. मुख़ातिब = सामने, बात करने वाला
4. फ़ुसूँ = जादू; फ़रेब
5. मक़बूलियत = लोकप्रियता
6. शै = चीज़, वस्तु, पदार्थ
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