बर्बादियों का
मंज़र 1 ऐसा कहीं नहीं है
हैरान हूँ कि तुमको
अब भी यक़ीं नहीं है
इक लाश चीखती है हर गाँव हर गली में
महरूम 2 अब ग़मों से कोई मकीं 3
नहीं है
ग़म की सियाह रातें कटतीं नहीं यहाँ अब
क़िस्मत से ना शिकस्ता4 कोई
जबीं 5 नहीं है
नज़रें
बयाँ करेंगी अब हाले दिल मुकम्मल
लफ़्ज़ों पे गर हमारे तुमको
यक़ीं नहीं है
सब कुछ लुटा चुके हो लेकिन नहीं शिकन तक
मग़रूर तुम
सा हमने देखा कहीं नहीं है
अफ़सोस है सियासत मौका तलाशती
है
बेमौत मर गया वो जन्नत नशीं नहीं है
दुनिया नई-नई थी तब से ये सिलसिला है
ज़ालिम की उम्र लम्बी होती कहीं नहीं है
1. मंज़र = दृश्य
2. महरूम = वंचित
3. मकीं = रहने वाले
4. ना शिकस्ता = ना हारा हुआ; ना टूटा हुआ
5. जबीं = ललाट; माथा