Thursday, 1 August 2019

याद


आज नदी किनारे बैठ कर याद आया, कि
जब पहली बार तुम्हें सुना था, देखा था,
कितना मुतास्सिर था !
ऐसा लगा था, कि तुम सा
शायद कोई भी नहीं !

तुम एक सुंदर, सुरम्य झील की तरह थे,
गंभीर, गहरे, और शांत;
देर तक विचलित नहीं रहने वाले.
तुम्हारे पास आ कर बैठना,
बेचैनी कम करता था,
सुकून देता था, तसल्ली देता था.
फिर मैं इन्हीं की तलाश में, बार-बार
तुम्हारे पास आ कर बैठने लगा.

पर जैसे-जैसे अजनबियत दूर होती गई,
मालूम होने लगा, कि तुम
शांत या गंभीर नहीं, ठहरे हुए थे;
तुम्हारे अंतर्तल के न दिखने को,
मैंने गहराई समझ लिया था;
और यूँ तुम्हारी अप्रतिम आभा,
हर मुलाक़ात के साथ बढ़ती जाती
एकरसता के साथ, घटती चली गई.
आज नदी किनारे बैठ कर याद आया...

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