एक अन्जान से शहर के
किसी गुमनाम ठिकाने से
अस्पताल तक का रास्ता,
जब याद होने लगे,
तो बताने की ज़रूरत नहीं
कि कोई बेहद करीबी शख्स,
बेहद बीमार है.
यूँ तो बीमार हर शख़्स
कभी न कभी पड़ता ही है,
पर ज़्यादा तकलीफ़
शायद तब होती है,
जब आप नहीं,
आपका कोई अपना बीमार पड़ता है.
उसकी तकलीफ़ ठीक से
ना समझ पाने की बेचारगी,
उसे खो देने का डर,
और इस बाबत कुछ ख़ास
ना कर पाने की लाचारगी !
काश ! ये दिन मेरी ज़िन्दगी में,
कभी फिर लौट के ना आएँ !
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