इस कदर बेतरह ग़म उठाए हैं
तब कहीं ग़म को समझने पाए हैं
हम उसूलों पे शहीद हो कर भी
इस जहाँ को ना बदलने पाए हैं
ख़्वाब जन्नत का नहीं हसीन उतना
बाद मेरे,
वो ज़माने आए हैं
कोशिशें मेरी फ़िज़ूल न होंगी
असलियत कुछ लोग देख आए हैं