जाने वाले चले जाते हैं,
ज़िन्दगी तन्हा रह जाती है.
ये अफ़सोस जताते रिश्तेदार,
ये फ़िक्रमंद से नज़र आते चेहरे,
और तन्हाई की तीमारदारी की
नाकामयाब कोशिशों के बीच-बीच में
कुछ ग़मगीन सी रूहें.
इस बेमानी सी भीड़ में खड़ा
मैं अकेला, देखता हूँ,
बड़ों की संजीदगी को समझने में
नाकाम से अतफ़ाल,
उनके सवालों से लाजवाब
उनके झुंझलाते हुए वालदैन,
और इस सच से ख़ुद रूबरू
कुछ हमउम्र शख्सियतें.
दिलासा देने के वही
घिसे-पिटे आदाब दिखा कर,
"होनी को कौन टाल सकता है",
"उसकी मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है",
"अपना ख्याल रखियेगा भाईसाहब",
कह कर,
जाने वाले चले जाते हैं,
ज़िन्दगी, एक बार फिर, तन्हा रह जाती है.
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