Sunday, 31 July 2022

उसकी याद में

 

उसे मुझसे बेपनाह मुहब्बत थी

इतनी, जितनी मैं उससे

चाह कर भी, नहीं कर सकता

 

नहीं !  मुझमें ऐसी कोई ख़ासियत न थी

अगर ऐसा कुछ भी होता तो 

मेरे अफसानों की एक फ़ेहरिस्त ना होती !

 

वैसे कहते हैं कि हरेक इन्सान में  

कुछ न कुछ बात तो होती है, फिर

ऐसी मुहब्बत सबको नसीब क्यूँ नहीं होती !

 

हालाँकि सच तो यही है कि किसी से

बेइन्तिहा मुहब्बत करने के लिए

उसमें कोई ख़ासियत कब चाहिए

 

चाहिए तो बस एक नज़र

जो कुछ लम्हों के लिए ही सही 

पर किसी को भी ख़ास बना दे

 

तो फिर कहाँ से लाऊँ वो नज़र

जो ख़ुद से आगे बढ़ कर

किसी और की भी क़ाइल1 हो सके

 

कहाँ से लाऊँ वो नज़र

जो चन्द ख़ूबियों से इस क़दर मुतमइन2 हो

कि सारी ख़ामियाँ बेमानी हो कर रह जाएँ    

 

अब कहाँ से लाऊँ वो नज़र

जिसे सिवा उसके

कुछ और दिखाई ही ना दे

 

वैसे एक और सच शायद ये भी है कि

किसी में ख़ासियत वो ढूँढते हैं जिनमें

मुहब्बत करने का माद्दा3 ही नहीं होता

 

क्योंकि कुछ न कुछ ख़ासियत

तो हर शख़्सियत में होती है, 

पर हर किसी को वो ख़ास शख़्स नहीं मिलता



1.       क़ाइल होना = मान लेना; प्रशंसक / मुरीद होना

2.       मुतमइन होना = संतुष्ट होना; इत्मीनान होना

3.       माद्दा = वह मूल पदार्थ जिससे कोई चीज़ बने; योग्यता; सामर्थ्य; पात्रता; वह जिससे कोई चीज़ बनी या बनाई जाती हो, घटक


Friday, 8 July 2022

अजनबी शहर

ये      शहर     अपना       जिसने     बरसों    परवरिश   की 
पहलू  में  जिसके  सुकूँ   भी   था  और   हल्की  तपिश1 भी
अब   जाने  क्यूँ   किसी  अजनबी   सा   बेगाना   लगता   है 
जानी  पहचानी  हैं  राहें   इसकी   पर  अनजाना  लगता  है

वही  गर्मी  वही  बारिश  शहर  का  अब भी  वही  मौसम है
वही   बच्चे   वही   मेले   मगर  अब  रौनक  थोड़ी   कम  है
वही   गलियाँ    वही    रस्ते    जिन   पर    बड़े    हुए    हम
पता  पूछते   हैं   अब   उन्हीं  से  हैरत  आँखों  में  लिए हम 

सुना  है  इन  दिनों   ख़ूब  तरक्क़ी  हुई   है  शहर  में  अपने 
ऐशो आराम की हर चीज़  मंज़र-ए-आम2 है शहर में अपने 
मगर  मुस्तक़िल3 सी  एक  कसक  रहती है नज़र में अपने 
क्यूँ   दिखता  नहीं  एक  भी  दोस्त  पुराना  शहर  में  अपने 



  1.  तपिश = गर्मी; बेचैनी; व्याकुलता; कष्ट
  2.  मंज़र-ए-आम = साधारण दृश्य; आसानी से नज़र आने वाला 
  3.  मुस्तक़िल = स्थाई, अटल; निरंतर; पक्का