मैं चाहूँ भी तो तुम जैसा हो नहीं सकता
तेरा हमदर्द 1 तो हूँ पर रो नहीं सकता
थकन के बाद दिन भर की यूँ तेरी तरह
घड़ी भर हँस तो लूँ पर ख़ुश हो नहीं सकता
हसीं तो और भी हैं
तुझ से मगर कोई
शरीर 2 इतना ज़हीन 3 इतना हो नहीं सकता
हज़ारों तल्ख़ियाँ 4
इन महरूमियों 5
ने दीं
ये वो हैं दाग़ जिनको तू
धो नहीं सकता
तुम्हारी याद में गुज़रे मरहले 6 कितने
ख़ुशी के दरमियाँ
लेकिन रो नहीं सकता
मुहब्बत एक बहुत मुझको सात
जनमों तक
ख़यालों में किसी के फिर खो नहीं सकता
निहायत बेवजह है
अब ढूँढना उसको
भटक कर रह गया जो फिर खो नहीं सकता
कहाँ तक ढूँढ़ता
मैं आख़िर तुम्हें तनहा
सफ़र में इस कोई साथी हो नहीं सकता
बिछड़ना तो मुक़द्दर की बात है लेकिन
किसी सूरत ये बोझा
मैं ढो नहीं सकता
1.
हमदर्द = जो दर्द में
साथ हो; दुःख-दर्द का साथी; सहानुभूति रखने वाला
2.
शरीर = शरारती;
छेड़ छाड़ करने वाला
3.
ज़हीन = कुशल;
समझदार
4.
तल्ख़ियाँ =
कटुता,
कड़वापन;
तकलीफ़ें; मुसीबतें
5.
महरूमी = निराशा; वंचित रहना,
प्राप्त न होना
6.
मरहला = पड़ाव; ठिकाना; मंज़िल
जो हो नहीं पता वही तो हसरत है। या रब मेरी दुआ कभी न कुबूल हो , बाकी ही क्या बचेगा जो हसरत निकल गई।
ReplyDeleteहम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल,
अब ये मलाल है कि ,तमन्ना निकल गई।
गहरी अनुभूतियों के बीच शायरी , बहुत खूब
बहुत शुक्रिया! हसरत पर आपने क्या ख़ूब शेर याद दिलाया है!
DeleteBahut khoob bhai sahab
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए!
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