सच और झूठ के दायरों से बाहर निकल के देखिये
क्या क्या मरहले1 दरमियाँ हैं कुछ दूर चल के देखिये
नामुमकिन नहीं चाँद तो ख़ुद चल के ज़मीं पे आयेगा
बच्चों की तरह आप एक दिन थोड़ा मचल के देखिये
गर मज़बूतियाँ आज़मानीं हों नीयत - ए – असीर2 की
दामन थाम के मुफ़लिसी का दो गाम चल के देखिये
बेहद ख़ुशनुमा गर बनानी हो आपको ये ज़िन्दगी
औरों की जगह आप थोड़ा ख़ुद को बदल के देखिये
1.
मरहला = गंतव्य, मंज़िल; बड़ा या कठिन काम
2.
असीर = ऊँचा, बुलंद; आसमान; ख़ालिस