Sunday, 8 September 2019

दर्द


कोई दर्द की तह तक जा के तो देखे 
पत्थर की ज़मीं है, टकरा के तो देखे 

फिर खुल जाएगी दिल की अस्लियत सब पे 
कोई रू-ब-रू इस के आ के तो देखे 

आसाँ है बहुत हाले दिल पे हँस देना 
कोई ज़ख़्म तू ख़ुद भी खा तो के देखे 

उठतीं हैं छलक, चाहे हिज्र हो या वस्ल 
मसले कोई नरगिस-ए-तश्ना के तो देखे 

हों मशहूर हम भी सबकी निगाहों में 
महफ़िल में हमें वो शरमा के तो देखे 

तू ही है कि अब तक हूँ "मुन्तज़िर" जानाँ 
कोई और मुझको  आज़मा  के तो देखे 

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