कोई दर्द की तह तक जा के तो देखे
पत्थर की ज़मीं है, टकरा के तो देखे
फिर खुल जाएगी दिल की अस्लियत सब पे
कोई रू-ब-रू इस के आ के तो देखे
आसाँ है बहुत हाले दिल पे हँस देना
कोई ज़ख़्म तू ख़ुद भी खा तो के देखे
उठतीं हैं छलक, चाहे हिज्र हो या वस्ल
मसले कोई नरगिस-ए-तश्ना के तो देखे
हों मशहूर हम भी सबकी निगाहों में
महफ़िल में हमें वो शरमा के तो देखे
तू ही है कि अब तक हूँ "मुन्तज़िर" जानाँ
कोई और मुझको आज़मा के तो देखे
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