बर्दाश्त कर लिया हमने किसी तरह उसे खो देना
बर्दाश्त होता
नहीं मगर किसी तरह उसका न होना
वो गया भी तो कुछ
इस तरह बिना पैग़ाम दफ़अतन1
ढूँढता रह गया मैं नाकाम किये न जाने कितने जतन
लोग हमदर्द न
जाने कितने दिलासे दे चुके अब तक
और न जाने चलेगा ये
तकल्लुफ़ी सिलसिला कब तक
मैं आज जो कुछ भी हूँ बस उसी की बदौलत हूँ
लोग कहते भी हैं कि मैं कुछ-कुछ उसी की सूरत हूँ
कोरी तसल्ली है कि
जब तक का साथ था ख़ुशनुमा था
किसी को क्या ख़बर कि वो शख्स़ मेरा क़ुत्बनुमा2
था
खो गया वक़्त की गर्दिशों में वो मेरे अज्दाद3
की तरह
रह गया ज़ेहन में मेरे ख़ुशफ़हम सी इक याद की तरह
1.दफ़अतन = अचानक, सहसा, यकायक, अकस्मात; फौरन ; बिना सोचे-समझे
2.क़ुत्बनुमा = दिशा बतानेवाला यंत्र, compass; (लाक्षणिक) नेतृत्व करने वाला, मार्गदर्शक, पथप्रदर्शक
3.अज्दाद = पूर्वज, पुरखे, बाप दादा, पुराने लोग