जीवन का इक ध्येय कठिन चुन
क्या रखा इस आसानी में
ऊँचे लक्ष्य बिना ये जीवन
समझो गुज़रा नादानी में
स्वप्न
अगर हो इन आँखों
में
नामुमकिन
हो तो बेहतर है
मार्ग दुरुह जितना ही होगा
फिर मंज़िल उतनी
सुन्दर
है
कठिन अग्नि
में तप कर ही तो
सोना कुन्दन बन पाता है
अथक परिश्रम के बिन ये तन
रोगी जैसा बन जाता है
जीवन रण है पल प्रति
पल
सामर्थ्य बढ़ेगा लड़ने से
जब ठान लिया तो ठान
लिया
फिर क्या मतलब है डरने
से
खेत रहे जो बड़े युद्ध में
जो वीरगति को प्राप्त हुए
फैली कीर्ति दिग् दिगंत
तक
वो जनमानस में व्याप्त
हुए
योग्य बनो तुम इस लायक कि
स्वरूप बदल दो दुनिया का
सौभाग्य
लिखो तुम ख़ुद
अपना
प्रारब्ध
बदल दो दुनिया का