Thursday, 11 January 2024

मुकम्मल ज़िन्दगी

आख़िर क्या होती है

एक मुकम्मल1 ज़िन्दगी ?

ये अजीब सा सवाल,

पता नहीं कहाँ से आ कर

ज़ेहन2 में एक बोझ

की तरह बैठ गया है.

उठते-बैठते हमेशा

ज़ेहन में इस पर एक

तक़रीर3 सी चलती रहती है.

 

कहीं ये वो ज़िन्दगी तो नहीं

जिसने बेशुमार4 दौलत कमाई हो,

ढेरों कामयाबियाँ हासिल की हों,

ता-उम्र सेहतमन्द रही हो,

और साथ ही दुख-दर्द से भी

बिलकुल नावाक़िफ़5 रही हो.

 

अब ज़ाहिर है कि ऐसी ज़िन्दगी तो

ख़्वाबों-ख़यालों में ही मिलेगी,

हक़ीक़तन6 तो ये मुमकिन नहीं लगती.   

 

तो फिर एक मुकम्मल ज़िन्दगी

कहीं वो ज़िन्दगी तो नहीं

जिसे जीने वाला

अपने आख़िरी लम्हों से थोड़ा पहले

चंद जानने वालों के दरमियान

ये ऐलान कर दे,

कि उसने एक मुकम्मल ज़िन्दगी जी है

और उसे अपनी ज़िन्दगी से

कोई भी गिला नहीं है.

 

और तो और,

अगर मौका मिले तो

ये क़िबला7 वही ज़िन्दगी

बिला शिक्वा8,

दोबारा जीने को भी तैयार हैं!

 

मगर क्या हम उनके क़ौल9 को

आँखें मूँद के सच मान सकते हैं!

अगर नहीं, तो क्या फिर

कोई ज़िन्दगी मुकम्मल नहीं,

और क्या, ये सिर्फ़

तसव्वुर बाँधने10 की बात है!

 

फ़ौरी11 तौर पर देखें

तो यही सच मालूम होता है,

क्योंकि बड़ी-बड़ी शख्सियतों तक ने भी

अपनी ज़िन्दगी में कुछ न कुछ

मलाल होने की बात क़ुबूल की है,

और बहुतों ने ये माना भी है

कि उनकी ज़िन्दगी मुकम्मल नहीं रही.

 

तो फिर ये कामयाबी,

ये दौलत, ये शोहरत,

अगर ये सब ज़िन्दगी को

मुकम्मल नहीं बना सकते

तो फिर आख़िर क्या है वो चीज़

जो इस ज़िन्दगी को

मुकम्मल बनाती है!

 

उस दरवेश12 ने मुस्कुराते हुए

मुझसे बस इतना ही कहा, कि

तुम्हारा ये सवाल ही ग़लत है!

ऐसी कोई चीज़ नहीं जो तुम्हारी

ज़िन्दगी को मुकम्मल बना सके,

चीज़ों की इतनी हैसियत कहाँ!

 

ज़िन्दगी का मुकम्मल होना,

किसी चीज़ या मुकाम के हासिल होने

या फिर किसी दर्द या तकलीफ़ के  

बस ना होने से ही नहीं होता,

और ना ही ज़िन्दगी,

अपने आख़िर में जा कर

मुकम्मल होती है.

 

 ज़िन्दगी तो हर रोज़ हर लम्हे

एक नया मौका पाती है

मुकम्मल होने का.

 

वो दिन, वो लम्हे, जो तुम्हें

सुकून और इत्मीनान पहुँचाते हैं,

जिनका गुज़रना,

तुम्हें मालूम तक नहीं पड़ता,

और जिन्हें तुम नहीं गुज़ार रहे होते    

किसी चीज़ की ख़ातिर,

या किसी और की ख़ातिर.

 

तुम्हें मालूम होता है

कि उस लम्हे में ज़िन्दगी

मुकम्मल गुज़री या नहीं !

 

एक दिन जब तुम बहुत बीमार थे, फिर भी  

तुमने किसी ज़रूरतमंद की मदद की थी

वो दिन, तुम्हारी जिस्मानी तकलीफ़ के बावजूद भी  

तुम्हें मालूम है कि मुकम्मल गुज़रा

 

दौलतमंद होने के बाद भी, जब-जब

तुमने अपनी ज़िन्दगी में कोई कमी

महसूस नहीं की, वो वक़्त,

तुम्हें मालूम है कि मुकम्मल गुज़रा

 

ऊँचे ओहदों पर पहुँच कर भी

जब कभी तुमने ख़ुद को

अपने साथियों से दूर नहीं पाया, वो हर लम्हा,  

तुम्हें मालूम है कि मुकम्मल गुज़रा

 

तुम्हारी किसी कामयाबी का जश्न

जब कभी भी तुम्हें अकेले

नहीं मनाना पड़ा, वो दिन,

तुम्हें मालूम है कि मुकम्मल गुज़रा

  

और इस तरह मेरे दोस्त

तुम ख़ुद देख सकते हो

कि कब, कहाँ और कैसे

तुम्हारी ज़िन्दगी मुकम्मल नहीं हो पाई !

वैसे याद रहे कि हर एक ज़िन्दगी

एक किस्से की तरह होती है

और कोई भी किस्सा

चाहे वो मुख़्तसर13 हो या तवील14,

ख़ुशनुमा हो या ग़मगीन,

मुकम्मल हो सकता है.

 

और रहा सवाल कि

आख़िर क्या है

एक मुकम्मल ज़िन्दगी !

 

तो बस यूँ समझ लो

कि एक सिलसिला है

मुकम्मल लम्हों और दिनों का,

एक ठहराव है आदमी की सोच में,

एक नज़रिया है ज़िन्दगी के बारे में,

कि फिर जिसके बाद

ज़िन्दगी मुहताज15 नहीं रहती

किसी ओहदे की, किसी मुकाम की,

किसी दौलत या शोहरत की,

और ना ही किसी कल की.

 

वो आज, इस लम्हे में ही

पूरी तरह मुकम्मल है,

और ऐसा होने से उसे

कोई नाकामयाबी,

कोई महरूमी16,

नहीं रोक सकती.

 

अगर तुम पैदा कर सको

ख़ुद में वो सोच,

वो ठहराव, वो नज़रिया,

तो मेरे दोस्त, हर रोज़

तुम अपने सामने खड़ा पाओगे

इक मुकम्मल ज़िन्दगी को.



1. मुकम्मल = संपूर्ण, भरपूर.

2. ज़ेहन = मन, बुद्धि.

3. तक़रीर = वक्तव्य, बात, बातचीत

4. बेशुमार = असंख्य, अनगिनत, जिनकी गिनती न हो सके, बहुत अधिक

5. नावाक़िफ़ = अनभिज्ञ, अपरिचित

6. हक़ीक़तन = वास्तव में; वस्तुतः; सच में; हकीकत में

7. क़िबला = बुज़ुर्ग या अज़ीज़ शख़्स के लिए, प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तियों के लिए संबोधन का शब्द

8. बिला शिक्वा = बिना शिकायत

9. क़ौल = कथन, वचन, बात; प्रतिज्ञा, वादा

10. तसव्वुर बाँधना = ख़्याल करना, सोचना, कल्पना करना

11. फ़ौरी = जल्दी

12. दरवेश = साधु; संन्यासी; फ़कीर; भिक्षुक

13. मुख़्तसर = लघु, कम, थोड़ा, संक्षिप्त, घटाया या छोटा किया हुआ, छोटा

14. तवील = दीर्घ, लंबा

15. मुहताज = दरिद्र, ज़रूरतमंद, इच्छुक, निर्धन, आश्रित, ज़रूरतमंद, अभाव वाला, जिस के पास कुछ न हो

16. महरूमी = निराशा, असफलता, नाकामी, वंचित रहना, अभाव


1.