Sunday, 30 April 2023

याद


एक तुझसे बिछड़ कर बहुत कुछ  खो दिया है

हाले दिल क्या कहूँ  याद कर बस रो दिया है


क्या बताऊँ  मेरा खो गया  क्या  दूर हो कर

नींद भी ख़्वाब भी  रूह भी  सब खो दिया है


ज़िन्दगी भर  तुझे  याद  कर  रोता  रहा हूँ

दाग़ दिल पर थे जितने सभी को धो दिया है


दिल  की  गहराइयों  में  तुझे  मैं  ढूँढ़ता हूँ

तू मिले  ना मिले  पर भुला ख़ुद को दिया है


तू  मुहब्बत  न समझे  तो बस  नादानियाँ हैं

ज़ख़्म खाता गया  और  दुआ तुमको दिया है


शिद्दत-ए-इश्क़ तो देखिये  बस याद  ने  इक

लौ नई  फिर चराग़-ए-सहर-दम1  को दिया है


बात  अपनी  भला किस तरह  जाए वहाँ तक

ज़ीस्तने  बिन मरे  रास्ता  किसको दिया है


और कितना असर हो  इबादत का  मेरी  अब

नाम  ले कर  ख़ुदा तक बना  उसको दिया है


याद करता रहा  मैं तुझे  कुछ  इस तरह से

नाम तेरा  किन्हीं  दिल नशींनों3 को दिया है 



1. चराग़-ए-सहर-दम = पौ फटने के वक़्त का चराग़

2. ज़ीस्त = ज़िन्दगी

3. दिल नशीं = जो दिल में बसे; प्रिय