एक तुझसे बिछड़ कर बहुत कुछ खो दिया है
हाले दिल क्या कहूँ याद कर बस रो दिया है
क्या बताऊँ मेरा खो गया क्या दूर हो कर
नींद भी ख़्वाब भी रूह भी सब खो दिया है
ज़िन्दगी भर तुझे याद कर रोता रहा हूँ
दाग़ दिल पर थे जितने सभी को धो दिया है
दिल की गहराइयों में तुझे मैं ढूँढ़ता हूँ
तू मिले ना मिले पर भुला ख़ुद को दिया है
तू मुहब्बत न समझे तो बस नादानियाँ हैं
ज़ख़्म खाता गया और दुआ तुमको दिया है
शिद्दत-ए-इश्क़ तो देखिये बस याद ने इक
लौ नई फिर चराग़-ए-सहर-दम1 को दिया है
बात अपनी भला किस तरह जाए वहाँ तक
ज़ीस्त2 ने बिन मरे रास्ता किसको दिया है
और कितना असर हो इबादत का मेरी अब
नाम ले कर ख़ुदा तक बना उसको दिया है
याद करता रहा मैं तुझे कुछ इस तरह से
नाम तेरा किन्हीं दिल नशींनों3 को दिया है
1. चराग़-ए-सहर-दम = पौ फटने के वक़्त का चराग़
2. ज़ीस्त = ज़िन्दगी
3. दिल नशीं = जो दिल में बसे; प्रिय