Sunday, 2 January 2022

नया साल

नया  ये साल  भी  सफ़्हा1  पलटने का  बहाना है
नई  तारीख़  तो  है  पर  वही  क़िस्सा  पुराना है

पुराना  दिन  पुरानी  रात  सब  कुछ तो  पुराना है
नज़रिया  इक  नया ले कर  नया  इनको बनाना है 

पुराना  ग़म  पुराना  दिल  पुरानी  बात है  वो अब 
भुलाना  हो  भले  मुश्किल  मगर  उसको भुलाना है

चलो  फिर  ढूँढते  हैं  इक  पुराना  पड़  रहा  नाता 
किसी  रूठे  हुए  दोस्त  को  कैसे  भी  मनाना  है

मिली यूँ तो तुम्हें मंज़िल  भटक कर रात दिन लेकिन
पता उस रहगुज़र2 का  अब  तुम्हें सबको  बताना  है

हक़ीक़त वो नहीं  बस जो  समझते आ  रहे  हो  तुम 
जिहालत3 से  तुम्हें  अपनी   अभी  पर्दा  उठाना  है 

नये इस साल में भी हो तेरा इक अज़्म-ए-मोहकम4 ये
झुके तुझसे न ये दुनिया  मगर फिर भी  झुकाना  है



1.       सफ़्हा = क़िताब का पन्ना

2.       रहगुज़र = रास्ता; मार्ग

3.       जिहालत = अज्ञानता; अशिष्टता

4.       अज़्म-ए-मोहकम = दृढ़ संकल्प