मैं जानता हूँ मेरे दोस्त कि
तुम्हें रश्क1 है मेरी हस्ती पर
मेरी मजाज़ी2 कामयाबियों और
मिज़ाज-ए-कैफ़3-ओ-मस्ती पर
पर अफ़सोस कि तुम
नावाक़िफ़ हो मेरी मायूसियों से
मेरे दिल पे तारी4 उन
बेहद सियाह गहरी उदासियों से
जिन्हें मैंने ज़माने की निग़ाहों से
बड़ी मुश्किल से छुपा के रखा है
कोई राज़दार नहीं उनका बस उन्हें
अपने सीने में दबा के रखा है
ऐसा नहीं कि सोना बन जाती है
हर वो चीज़ जिसे मैं हाथ लगाता हूँ
बस तुम्हें नहीं मालूम ऐ दोस्त कि
उसके पीछे मैं ग़म कितने उठाता हूँ
तुम सोचते हो ना कि काश
तुम्हारी ज़िन्दगी मुझ जैसी होती
पर मैं हूँ कि दुआ करता हूँ कि
ऐसी ना होती चाहे फिर जैसी होती
चलो छोड़ो उठो अपने हाथों से
अपना मुकद्दर ख़ुद बनाओ
मुझ जैसे या किसी और जैसे नहीं
मुकम्मल ख़ुद जैसे बन जाओ
रश्क = इर्ष्या
मजाज़ी = भौतिक
कैफ़ = आनन्द
तारी = छाया हुआ / ढका हुआ