Sunday 23 May 2021

बर्बादी

 

बर्बादियों  का  मंज़र 1 ऐसा  कहीं  नहीं  है

हैरान हूँ  कि तुमको  अब भी  यक़ीं  नहीं है

 

इक  लाश  चीखती है हर गाँव हर गली  में

महरूम 2 अब ग़मों से  कोई मकीं 3 नहीं है

 

ग़म  की सियाह रातें कटतीं नहीं  यहाँ  अब 

क़िस्मत से ना शिकस्ता4 कोई जबीं 5 नहीं है

 

नज़रें  बयाँ  करेंगी अब हाले दिल मुकम्मल

लफ़्ज़ों पे गर हमारे  तुमको  यक़ीं  नहीं  है

 

सब कुछ लुटा चुके हो लेकिन नहीं शिकन तक

मग़रूर  तुम  सा  हमने देखा  कहीं  नहीं  है

 

अफ़सोस  है   सियासत  मौका  तलाशती  है 

बेमौत   मर  गया वो  जन्नत नशीं  नहीं है


दुनिया  नई-नई  थी  तब से ये सिलसिला है

ज़ालिम  की उम्र लम्बी  होती  कहीं  नहीं है

  

 

1.       मंज़र = दृश्य

2.       महरूम = वंचित

3.       मकीं = रहने वाले

4.       ना शिकस्ता = ना हारा हुआ; ना टूटा हुआ

5.       जबीं = ललाट; माथा

 

Monday 17 May 2021

दीद

 

आवाज़  की   हरारतसबको  यहाँ  दिखी  है

बर्फ़ाब2  दिल की  हालत  उनको कहाँ दिखी है

 

हर  शख़्स  देखता  है  तस्वीर  को  मुकम्मल3  

तस्वीर  पर  मुकम्मल  किसको  यहाँ  दिखी है 

 

सौ रंग  हैं  जहाँ  में  वाक़िफ़  कहाँ  मैं  सबसे

इतना  मगर  पता है  वो  चीज़  हाँ  दिखी  है

 

गर  लाख  मुश्किलें  भी  हों  राह  में  सतातीं

आदाब4  में  हमारे   उलझन  कहाँ  दिखी  है


थोड़ा  ठहर  के   देखो   मंज़र  बदल  रहा  है

तस्वीर  वो   पुरानी  अक्सर   कहाँ  दिखी  है


सदियाँ    गुज़र   गईं  हैं  इन्सान  को भटकते

किस्मत किसी को लेकिन अब तक कहाँ दिखी है 


अपना तुम्हें समझ कर  था  मुन्तजिर  तुम्हारा

लेकिन  ये  बेक़रारी   तुमको   कहाँ  दिखी  है



1.       हरारत = गर्मी; जोश; गुस्सा

2.       बर्फ़ाब = बर्फ़ से पिघला हुआ पानी; बर्फ़ सा ठंढ़ा पानी
 
3.       मुकम्मल = पूर्ण; पूरे तौर पर

4.       आदाब = शिष्टाचार; तहज़ीब


Sunday 9 May 2021

उलझन


महफ़िलों  से  भागता  हूँ   कोई  तदबीर   नहीं  होती

इस मुहब्बत  के सिवा क्या  कोई  तक़रीर  नहीं होती


है गुज़ारिश आज महफ़िल की कि सूरत हो बयाँ उनकी

आज  जाना  क्यूँ  ख़ुदा की  कोई  तस्वीर  नहीं होती


पास हो कर  भी रहा जो दूर  कमबख़्त न जाने  क्यूँ

अब  मुकम्मल  इस जहाँ में  कोई तक़दीर नहीं होती


माँगता हूँ  अब  दुआओं में  तुम्हें रोज़  तुम्हीं से मैं

सादगी  की मेरे  दिल सी  कोई  तफ़्सीर  नहीं होती


वो ही वो आए नज़र क्यूँ  अब मुझे हर एक चेहरे में

क्यूँ किसी और शै की  ऐसी  कोई तक्सीर नहीं होती



तदबीर = उपाय

तक़रीर = बातचीत , परिचर्चा

तफ़्सीर = व्याख्या

तक्सीर = प्रचुरता